एक जीवित वसीयत और अंतिम वसीयत के बीच अंतर क्या है?

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जीवित वसीयत और अंतिम वसीयत पूरी तरह से अलग कानूनी दस्तावेज़ हैं, जो वसीयतकर्ता की अलग अलग जरूरतों को पूरा करते है। आमतौर पर, वसीयत वसीयतकर्ता की इच्छाओं का एक कानूनी घोषणापत्र है कि वह अपनी मौत के बाद उसकी संपत्ति कैसे वितरित करना चाहता है| दोनों ही दस्तावेज वसीयतकर्ता की जरूरतों के अनुसार वसीयत बनाने के लिए उपयोगी है|

एक जीवित वसीयत क्या है?
एक जीवित वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है जो वसीयतकर्ता की चिकित्सकीय देखभाल के संबंध में दिशानिर्देश तैयार करता है, अगर कोई व्यक्ति चाहता है| और यदि वसीयतकर्ता बहुत गंभीर हद तक असमर्थ हो या बीमार हो और अपनी प्राथमिकताएं व्यक्त करने में असमर्थ है। यह जीवित वसीयत बेहद फायदेमंद है, जिसकी मदद से आप चुन सकते है कि आप जीवन-निरंतर चिकित्सा उपचारों में रहना पसंद करेंगे या श्वास-नली पसंद करेंगे।

जीवित वसीयत कब प्रभाव में आती है?
एक जीवित वसीयत आपके जीवित होते हुए ही प्रभाव में आती है| इसके विपरीत सामान्य वसीयत आपके मरनोप्रांत प्रभाव में आती है। उदाहरण के लिए, मैं जीवित वसीयत बनाता हूं, जो मेरे जीवित रहते प्रभाव में आ जाएगी, अर्थात यह केवल तब होगा, जब मैं अक्षम या गंभीर रूप से बीमार हूं, तो यह वसीयत प्रभाव में आ जाएगी। आम तौर पर, ऐसा कहा जाता है कि इस तरह की वसीयत से बहुत पैसे बचते है और लोगों का अपनी इच्छा के अनुसार इलाज होता है।

क्या एक जीवित वसीयत को निरस्त किया जा सकता है?
एक जीवित वसीयत को किसी भी समय आपकी इच्छा अनुसार रद्द किया जा सकता है। दो चीजें हैं जो आप कर सकते हैं| पहला यह है कि आप पिछले जीवित वसीयत को रद्द कर सकते हैं। आप जीवित वसीयत यह लिखकर रद्द कर सकते हैं कि यह रद्द कर दिया गया है। दूसरी चीज जो आप कर सकते हैं एक नई जीवित वसीयत का निष्पादन। यह आपके पिछले वसीयत को निरस्त कर देगा| वसीयत का निरस्तिकरण आपके परामर्श चिकित्सक को निरस्त करने की जानकारी दे कर किया जा सकता है।

एक जीवित वसीयत और एक अंतिम वसीयत के बीच अंतर



अब जब हमने जीवित वसीयत और अंतिम वसीयत की अवधारणाओं को देख लिया है, और हम उनके बीच का अंतर भी जानते हैं। अंतर केवल समय का नहीं है, जब वसीयत प्रभाव में आती है, बल्कि वो व्यक्ति भी है उन्हें निष्पादित करता है। जीवित वसीयत अभी भी भारत में वैध नहीं है, हालांकि, कुछ खास परिस्थितियों में यह न्यायपालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है कि यह अंतिम उपाय है। जब अंतिम वसीयत की बात आती है, तो उसे पंजीकृत और स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए। यह तब ही प्रभाव में आती है जब वसीयतकर्ता की मृत्यु हो जाती है । आप लॉरॅटो के माध्यम से वसीयत पंजीकृत कर सकते हैं।